कर्मवीर बनो - कविता - मधुस्मिता सेनापति

विधाता को क्यों कोसना
जब कर्म पर हैं भरोसा
विधाता ने
सर्वांग सही सलामत दिए
तो भाग्य पर क्यों रखते हो आशा ...?

बिना कर्म किए
भाग्य को कोसना
यह तो कायरता है
कर्म क्षेत्र से
हो कर दूर
भगवान को कोसते रहना
यह मानव का कैसा गुरूर है.....!!

दिन आज बुरे हैं
कल अच्छे दिन आ जाएंगे
यदि बिना कर्म किए
हाथ में हाथ रख कर
बस जिंदगी भर हम बैठ जाएंगे
तो जीवन में कैसे
सफल हो पाएंगे......!!

उठो जागो चलने की शुरुआत  करो
अब तुम भाग्य को
कोसना बंद करो
कर्म पर रखो तुम विश्वास
बिगड़े हुए कार्य को
तुम अब सुधार करो
बिना कर्म किए
घबराने से क्या होगा
ईश्वर को कोसने पर
क्या हमें सफलता मिल जाएगा......!!

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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