गम उसका नहीं था - कविता - आनन्द कुमार "आनन्दम्"

सुबह नींद देर से खुली
गम उसका नहीं था
रात को देर से सोया
गम उसका भी नहीं था।
वह कल मिला था
अपने बरामदे मे चारपाई पे बैठा
मन ही मन कुछ बुदबुदा रहा था
मैने उससे पूछा-बात क्या है? मुझे बताओ!
बड़े विस्मय से उसने देखा मुझे
और कहाँ कुछ भी तो नहीं सब ठीक हैं।
अगली सुबह मैने जो देखा
आँखो मे अस्क लिए रोता ही रहा
आज फिर सुबह नींद देर से खुली
परन्तु रातें कसमकस में गुजरती रही।

आनन्द कुमार "आनन्दम्" - कुशहर, शिवहर (बिहार)

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