रिमझिम सावन लखि घटा, मचला दिल मनमीत।
चिढ़ा रहे चातक युगल, देख विरह नवनीत।।१।।
कुपित आज दिलवर सजन, चंचल प्रिय रतिकाम।
लगी प्रिया मनुहार प्रिय, अश्न नैन अविराम।।२।।
क्षमा करो जीवन कुसुम, मैं पगली अनज़ान।
महकाओ खुशबू वदन, अब तो जानम मान।।३।।
मानी कर ली दिलकशी, पर तुम हो चितचोर।
मदन बाण घाएल किया, मचा रहे अब शोर।।४।।
तड़प रही थी विरह में, आलिंगन अतिताप।
अतः करी मैं दिल्लगी, नहीं मनसि था पाप।।५।।
मना रही मैं साजना, अब तो मानो बात।
मिलो प्रियम गलहार बन, खेलो मत जज़्बात।।६।।
चमन करो कुसुमित सुरभि, भरो हृदय मकरन्द।
सजनी मन गुलज़ार कर, आलिंगन आनन्द।।७।।
मैं काया तुम प्राण हो, प्रिय जीवन अभिलास।
मनुहारी बन कर खड़ी, सजन तजो परिहास।।८।।
लखि निकुंज हठधर्मिता, साजन चित्त कठोर।
प्रिया हृदय लखि वेदना, मिलन बिना मन घोर।। ९।।
प्रणय रीति मधुरिम मिलन, सजनी प्रिय मनुहार।
चारु चन्द्र मधु माधवी, प्रिया लगी गलहार।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली