मर्यादा - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

यह कैसा समय आ गया है
मर्यादाओं का ह्रास बढ़ रहा है,
संबंध फीके हो रहे हैं
मर्यादाएं दम तोड़ रही हैं
परिवार बिखर रहे हैं
ऐसा मर्यादा घटने के कारण हो रहा है।
छोटे बड़े, भाई बहन, सभी रिश्तों में
मर्यादाएं पिस रही हैं।
इन्हीं कारणों से रिश्तों की 
अहमियत घट रही है,
हालात गम्भीर हो रहे हैं,
हम सभी बेबस, लाचार हो रहे हैं।
किसे अपना कहें, किसे पराया
अब तो अपनों को भी
अपना कहने से डर रहे हैं,
अपने मर्यादा की गठरी
बाँधे बाँधे फिर रहे हैं।
मर्यादा बचाने की कोशिश
लगातार कर रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos