बच्चे - कविता - सतीश श्रीवास्तव

सुबह सुबह जब हो जाती है सब बच्चों से बात,
लगता है सचमुच मिल जाती एक बड़ी सौगात।
मन होता बेचैन घेरतीं जब भी दुख दुविधाएं,
बच्चे दिख जाते ही घटती मन सब शकायें।
आकर अभी पकड़ लेंगे वह मेरे जर्जर हाथ,
लगता है सचमुच मिल जाती एक बड़ी सौगात।
बात बात पर दिख जाती है जो थोड़ी मुस्कान,
लगता है आकर मुस्काते खड़े खड़े भगवान।
पलक झपकते दिवस बीतते पलक झपकते रात,
लगता है सचमुच मिल जाती एक बड़ी सौगात।
जिस दिन बात नहीं हो पाती मन रहता बेचैन,
नींद नहीं आती है सुख की नहीं झपकते नैन।
रिंगटोन के इंतजार में हैं तुलसी के पात,
लगता है सचमुच मिल जाती एक बड़ी सौगात।
वह भी कहते हमें गोद में आओ और उठाओ,
उंगली पकड़ो बाहर निकलो हमको खूब घुमाओ।
मजबूरी है बीच में पसरे यहां समुंदर सात,
लगता है सचमुच मिल जाती एक बड़ी सौगात।
बच्चे सुखी रहें हरदम ही प्रभु जी यही विनय है,
बच्चों की खुशियों से ही तो इस जीवन में लय है।
भरा रहे खुशियों का खजाना विनय सुनो हे नाथ,
लगता है सचमुच मिल जाती एक बड़ी सौगात।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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