अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व - आलेख - अतुल पाठक "धैर्य"
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व - आलेख - अतुल पाठक "धैर्य"
मंगलवार, अगस्त 11, 2020
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जो रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में जन्मे थे।
जन्माष्टमी को केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। सम्पूर्ण विश्व के अनेकों सनातन भक्तों की आस्था का केंद्र हैं भगवान श्रीकृष्ण।
श्रीकृष्ण देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र थे। मथुरा नगरी का राजा और देवकी का भाई कंस था जिसने आकाशवाणी द्वारा सुनी चेतावनी देवकी के आठवें पुत्र द्वारा अपनी हत्या के भय से देवकी और वसुदेव को काल कोठरी में डाल दिया और उनकी सात संतानों को जान से मार दिया।
अत्याचारी कंस का समूल विनाश करने के लिए भगवान विष्णु ने भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि को श्रीकृष्ण अवतार के रूप में मथुरा में जन्म लिया। अत्याचार को मिटाने के लिए प्रभु स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए। अतः इस दिन को कृष्णजन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर सारी दुनिया भक्ति के रंगों में सराबोर हो उठती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर कान्हा की मनमोहक छवि को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा पहुँचते हैं।
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर न सिर्फ मथुरा अपितु सम्पूर्ण भारत कृष्णमय हो जाता है। इस दिन मंदिरों को ख़ास तौर पर सजाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन स्त्री पुरुष और बच्चे सभी बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में कान्हा की झाँकियाँ सजाती जाती हैं। भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। बालकुमारों को कृष्ण रूप में सजाया जाता है और रासलीला का आयोजन किया जाता है। इस पावन पर्व के लिए लोग लड्डू गोपाल के लिए पोशाक और अपने चहेते कान्हा की प्रतिमा खरीदते हैं। इस दिन सभी भक्त खूब जोरों से तैयारियाँ करते हैं और 12 बजे तक इंतजार करते हैं। 12 बजते ही सम्पूर्ण भारत में बड़ी धूमधाम से प्यारे मोहन का जन्मोत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन देश में कई जगह दही हांडी प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। दही हांडी प्रतियोगिता में हर नगर के बाल गोविंदा प्रतिभाग करते हैं। छाछ से भरी मटकी रस्सी से ऊपर आसमान में लटका दी जाती है। बाल गोविंदाओं द्वारा दही से भरी मटकी को फोड़ने का प्रयास किया जाता है। दही हांडी प्रतियोगिता में विजेता टीम को उनकी कुशलता के अनुरूप इनाम दिया जाता है।
इस पावन पर्व की बेला पर कृष्णभक्त गोविन्द गोपाल के मंगल गीतगान गाते हैं उन्हें भोग लगाने से पहले माखन मिश्री खिलाते हैं फिर यही प्रसाद सभी भक्त जनों में बाँटा जाता है।साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
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