पुनः खुशी बरसात हो - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

बाढ़ आंधियाँ साथ   में , बिजली   की   सौगात।
जान माल बलि ले   गई , निर्मम   यह  बरसात।।१।।

कहीं मेघ वरदान है , कहीं बना है   काल। 
बही प्रजा   जलधार में , गाँव शहर बदहाल।।२।।

छायी घन काली घटा , नभ से बिजली पात।
हवा चली बन आंधियाँ , बरसी यह बरसात।।३।।

कैसी कुदरत आपदा , एक साथ आघात।
कुपित घटा बरसे धरा , आयी बन आपात।।४।। 

मेघ सतत जीवन धरा , हरियाली का हेतु।
कुद्ध कहर बरसी घटा , बहे शहर अरु सेतु।।५।।

सूर्यातप संसार को , मोचक यह बरसात।
रिमझिम रिमझिम बारिसें , होती नित सौगात।।६।।

जो जीवन  आधार है , वही कुपित संसार।
मूसलाधार बारिसें , जीवन है बेहाल।।७।।

दोषी हम ख़ुद आपदा , प्रकृति करें नुकसान। 
हिली धरा विकराल घन , झेल रहे तूफ़ान।।८।।

रोग वृष्टि तूफ़ान  से , आहत हैं  जग   लोग।  
भूकम्पन हर रोज अब , टूट धरा दुर्योग।।९।।

मौसम बदली करवटें , गगन  बना घनश्याम।
मौत खड़ी  बरसात बन , गाँव शहर  अविराम।।१०।।

चाह मनुज है असीमित , भौतिक  सुख धन भोग। 
तरुवन सागर गिरि सरित , खग पशु आहत लोग।।११।।

दिया  चुनौती प्रकृति को ,स्वार्थ  सिद्धि मनुजात। 
क्षिति जल नभ पावक अनिल , मर्माहत दे  घात।।१२।।

जिनसे   है  जीवन   जगत, पहुँचाते  हम   चोट।
अपराधी हम  प्रकृति  के, लिप्सा  मानव  खोट।।१३।।

लखि मानव नित दुर्दशा, कवि निकुंज मन शोक।
पुनः खुशी  बरसात  हो, रवि शशि भू आलोक।।१४।।

शस्य श्यामला फिर धरा, रोग शोक  मद मुक्त।
अमन  चैन मुस्कान बन, बरसे   घन   उन्मुक्त।।१५।।


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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