कुदरत और इंसान - कविता - मधुस्मिता सेनापति

बना है यह संसार जीबो जगत के समस्टि पर,
इंसान कुदरत के साथ ही खिलवाड़ मत कर....

किसी ने समंदर में जहर ही फैलाया,
साथ रहने का जज्बा जमीन से मिटाया...

आज वह दिन आ ही गया,
जब दूरी ही जीने का जरिया बनी,
पास आने पर जीवन पर खतरा बनी....

कुदरत के नियमों को कोई छेड़ा अगर,
यूं ही तड़पते कटेगा सफर,
खिलौना कुदरत के नियमों से इस कदर....

बना है यह संसार जीबो और जगत के समस्टी पर,
इंसान कुदरत के साथ यह खिलवाड़  मत कर....


मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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