वृद्ध-जन-सेवा हो, जीवन अपना - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

वृद्ध -जन- सेवा हो, जीवन अपना।
सम्मान सदा हो , हैं जिनकी रचना।।
समर्पित सेवा में,प्राण निछावर हों,
अब चाहे दर्द भले ही हो कितना ।
सम्मान सदा हो,हैं जिनकी रचना।।

जीवन हमें दिया इन्हीं ने,
रात बिताईं जाग-जाग कर ,
क्या उनके स्वाभिमान में ?
रह नहीं सकते,जीवन में तत्पर।
सम्मान सदा हो, हैं जिनकी रचना।।

संरक्षण में पले-बढ़े हम ,
रहें स्वास्थ्य-रक्षा में हरदम,
करें सजीव सदा ही इनको,
हम तो हैं, इनकी संरचना ।
वृद्ध-जन- सेवा हो,जीवन अपना।
सम्मान सदा हो, हैं जिनकी रचना।।

विकल मन को मिले शांति,
भावी पीढ़ी में हो ना भ्रांति,
सुख से इनका बीते बुढ़ापा ,
सुंदर होवे ,जीवन भी अपना ।
वृद्ध-जन-सेवा हो ,जीवन अपना।
हो हर मानव का, एक ही सपना।।

वृद्ध-जन-सेवा हो,जीवन अपना ।
सम्मान सदा हो,हैं जिनकी रचना।।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos