बेखबर था कि उसकी आंखो में पैमाना किसी और का था
मर्जी उसकी वो कैसे जिंदा रखते है ये फैसला अपना
मंजिल अक्सर अधूरा रह जाती है,
मोहब्बत क्या हुई कमबख्त अंधा ही हो गया
बस बात इतनी थी कि खुद्दारी को बेचकर,
गुलशन झा
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गुलशन झा
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