मेरे करीब आकर भी उसकी आंखो में जुस्तजू किसी और का था
इधर मुन्तजिर मै था कि आंखो से मुझे नशा कराया जाएगा
बेखबर था कि उसकी आंखो में पैमाना किसी और का था
बेखबर था कि उसकी आंखो में पैमाना किसी और का था
हल्के में ना लीजिए खुदा की दी हुई इनायत को
मर्जी उसकी वो कैसे जिंदा रखते है ये फैसला अपना
मर्जी उसकी वो कैसे जिंदा रखते है ये फैसला अपना
जिंदगी हमेशा मयस्सर नहीं होती,
आपके आरज़ू के हिसाब से
मंजिल अक्सर अधूरा रह जाती है,
मंजिल अक्सर अधूरा रह जाती है,
जिन्हें जीना होता है सबके हिसाब से
किताबे पढ़नी शुरू की तो आंखो पे चश्मा आ गया
मोहब्बत क्या हुई कमबख्त अंधा ही हो गया
मोहब्बत क्या हुई कमबख्त अंधा ही हो गया
जुस्तजू तो कभी थी ही नहीं हिज़्र के दिन काटने को
बस बात इतनी थी कि खुद्दारी को बेचकर,
बस बात इतनी थी कि खुद्दारी को बेचकर,
मै मोहब्बत नहीं खरीद सकता था
गुलशन झा