बेखबर था कि उसकी आंखो में पैमाना किसी और का था
मर्जी उसकी वो कैसे जिंदा रखते है ये फैसला अपना
मंजिल अक्सर अधूरा रह जाती है,
मोहब्बत क्या हुई कमबख्त अंधा ही हो गया
बस बात इतनी थी कि खुद्दारी को बेचकर,
गुलशन झा
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गुलशन झा
विशेष रचनाएँ
अकेले बैठना, चुप बैठना—इस प्रश्न की चिंता से मुक्त होकर बैठना कि ‘क्या सोच रहे हो?’—यह भी एक सुख है।
- अज्ञेय
अभिव्यक्ति के सारे माध्यम जहाँ निरस्त या समाप्त हो जाते हैं, शब्द वहाँ भी जीवित रहता है।
- केदारनाथ सिंह
कविता और प्रेम—दो ऐसी चीज़ें हैं, जहाँ मनुष्य होने का मुझे बोध होता है।
- गोरख पांडेय
साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए।
- फणीश्वरनाथ रेणु
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