छिद्रान्वेषी - कविता - दिनेश सूत्रधार


कविता में 
कवि में
राजनीति में
छवि में

गली में
कली में
फली-फली में

हर जगह
भरे पड़े है रंध्र
चाशनी- विहीन घेवर की तरह

गांव के प्रवेश-द्वार पर
पड़े कचरे की तरह
हर किसी के जेहन में
लगा है अम्बार छिद्रयुक्त उपलों का।

सकल विश्व कलंकित है
न्यूनताओं के स्याह कीचड़ की
अनगढ बूँदों से।

बस एक आप ही
रह गए है अछेदी!
केवल आप ही हैं गुण-विभूषित
साहित्य- भेदी!

क्योंकि आप
काव्य- छननी; जन-द्वेषी है
जी हां, आप छिद्रान्वेषी है।

दिनेश सूत्रधार
बाली (राजस्थान)

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