राजनीति में
छवि में
कली में
फली-फली में
चाशनी- विहीन घेवर की तरह
पड़े कचरे की तरह
हर किसी के जेहन में
लगा है अम्बार छिद्रयुक्त उपलों का।
न्यूनताओं के स्याह कीचड़ की
अनगढ बूँदों से।
रह गए है अछेदी!
केवल आप ही हैं गुण-विभूषित
साहित्य- भेदी!
काव्य- छननी; जन-द्वेषी है
जी हां, आप छिद्रान्वेषी है।
दिनेश सूत्रधारबाली (राजस्थान)