संदेश
हर सृजन कल्पना बन पलता - कविता - राघवेंद्र सिंह
निरवधि, उद्भवन धरातल पर, हर सृजन कल्पना बन पलता। हर काव्य स्वयं शृंगारित हो, हृदयारित-पथ पर है चलता। सिंचित हो करुणा-ममता में, हो…
कविता! तुम सबसे सुंदरतम - कविता - राघवेंद्र सिंह
निरुपम सृष्टि का सृजनहार, सौन्दर्य रोह तुम हो अनुपम। स्वरबद्ध, अलंकृत, छंदयुक्त, कविता! तुम सबसे सुंदरतम। तुम भावों का परिधान पहन, लगत…
ज्ञान बाँटने में नहीं कुछ खोने का डर - कविता - विनय कुमार विनायक
मैं शब्दों का हमसफ़र मैं शब्द की साधना करता हूँ मैं स्वर की अराधना करता हूँ अक्षर-अक्षर नाद ब्रह्म है मैं अक्षर की उपासना करता हूँ! मैं…
मैथलीशरण गुप्त: एक योद्धा - आलेख - डॉ॰ अर्चना मिश्रा
मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक युग के कवि माने गए। गुप्त जी को सिर्फ़ कवि कहना ही काफ़ी नहीं होगा, ये एक युगकवि कहलाए। इनका साहित्य, साहित्य क…
मेरे हिस्से कविता आई - कविता - राघवेंद्र सिंह
जिनका विस्तृत हृदय पात्र था, उनके हिस्से सिंधु आया। जिनका शीतल मन था शोभित, उनके हिस्से इंदु आया। जिनकी वाणी में था गर्जन, उनके हिस्से…
साहित्य - कविता - ज्योति
साहित्य का स्वर अनंत गहराई से निकलता है, विचारों का संग्रह, भावों का समाहार है। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास की उच्चता है, साहित्यिक रच…
एक कविता मेरी भी - कविता - गणेश दत्त जोशी
छपने तो दो एक कविता मेरी भी, अभी-अभी तो अंकुरित हुआ है भावनाओं का उद्वेक सीने में, कुछ सुन तो लो मेरी भी छपने तो दो एक कविता मेरी भी। …