संदेश
मुखाग्नि - कहानी - डॉ॰ वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज
बंसीलाल अब एकदम बूढ़े हो चले थे। अपने से चलना-फिरना भी अब मुश्किल-सा हो रहा था। पाँच-पाँच बेटे पर सभी अपने-अपने मतलब के। पत्नी पहले ही…
मैं वृक्ष वृद्ध हो चला - कविता - राम प्रसाद आर्य
फूलना-फलना था जो, दिन व दिन कम हो चला। वृद्धपन बढ़ता चला, यौवन का जोश अब ढँला। मैं वृक्ष वृद्ध हो चला॥ हर पात पीत हो चले, कली हर सिकुड…
बरगद और बुज़ुर्ग तुल्य जगत - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
युवाशक्ति आगे बढ़े, धर बुज़ुर्ग का हाथ। बदलेगी स्व दशा दिशा, देश प्रगति के साथ।। बरगद बुज़ुर्ग तुल्य जग, स्वार्थहीन तरु छाव। आश्रय किसलय …
वृद्ध जनों की करो हिफ़ाज़त - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
धरती और गगन के जैसे, वृद्ध जनों के साए हैं। इन बूढ़े वृक्षों की हम सब, पल्लव नवल लताएँ हैं। इनके दिल से सदा निकलती, लाखों लाख दुआएँ हैं…
बरगद और बुजुर्ग तुल्य जग - गीत - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'
बरगद और बुजुर्ग तुल्य जग, निःस्वार्थ छाँव जीवन होते हैं। आश्रय नवपादप बाल युवा, श्रान्त मनुज मन राहत समझो। अनुभव जीवन अतिदी…
सामान - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
बेमतलब रखी है कई चीजें , घर के हर कौनो में । किसे मालूम काम की कितनी है वो , कब कितनी किसके आएगी काम , कोई नहीं जानता , पर मालूम …
धरोहर - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हम सबके लिए हमारे बुजुर्ग धरोहर की तरह हैं, जिस तरह हम सब रीति रिवाजों, त्योहारों, परम्पराओं को सम्मान देते आ रहे हैं ठीक उसी तरह बुज…