संदेश
अल्हड़ बारात - लघुकथा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मोहन बहुत ही मेधावी छात्र था। उच्चतम शैक्षणिक सफलता के बाद भी उसे योग्यतानुसार जीविका न मिल सकी। परिवार की स्थिति दयनीय और बड़े परिवार …
पच्चीस से माथा-पच्ची - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
हमारे यहाँ शादी हो समारोह हो या फिर हो तेरहवीं की दावत, जलवे जब तक तलवे झाड़ के न हो तब तक स्वर्गवासी आत्मा को भी शांती नही मिलती है। अ…
दुल्हन - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
मेहँदी भरे रचे हाथ और किये सोलह शृंगार। मन में उथल-पुथल कि जाने कैसा होगा ससुराल।। नाजुक मन है, नाजुक तन है, और है दिल में भाव अपार। …
डोली चली जब - कविता - अंकुर सिंह
डोली चली जब बाबुल घर से, माँ बोल उठी अपनी सुता से। हुई पराई अब तुम बेटी, नाता तुम्हारा अब उस घर से।। तात कह रहे अब सुता से, तुम पराई ह…
मुक़म्मल जहान हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मेहमाँ तिरे आने से जीवन में आया मिठास हैं, ये शादी का लड्डू जीवन में लाया उल्लास हैं। कहते हैं ये लड्डू जो खाए वो पछताए होत हैं, तुझ स…
वरमाला - कविता - अंकुर सिंह
जयमाला पर जब तुम मिलोगी, तुम्हारे हाथों में वरमाला होगी। नज़र झुकाए प्रिय तुम होगी इशारों से हममें सिर्फ बातें होंगी।। तुम्हारी सहेलिया…
परिणय सूत्र - कविता - विनय विश्वा
देखा देखी प्रथम चरण हौ दूजा है बरियाती तिजा में दुलहिन घरे आई निज संसार छोड़ी आई। एक भरोसा तुझसे है प्रिये तू संसार है मेरा दो कुटूंब …