वरमाला - कविता - अंकुर सिंह

जयमाला पर जब तुम मिलोगी,
तुम्हारे हाथों में वरमाला होगी।
नज़र झुकाए प्रिय तुम होगी
इशारों से हममें सिर्फ बातें होंगी।।

तुम्हारी सहेलियाँ,
करेंगी मुझसे अठखेलियाँ,
बातों बातों में मुझसे,
पूछेंगी लाखों पहेलियाँ।।

बैठी मंद मंद तुम मुकराओगी,
सहेलियां संग मुझे सताओगी।
बोले उन्हें यदि कुछ मेरे यार,
तिरछी नजर तुम मुझे दिखाओगी।।

परिजन करेंगे दोनों के,
आशीष संग पुष्प वर्षा।
बड़ों के आशीष करेंगे,
हम दोनों की जीवन रक्षा।।

जीवन हमारा हो सुखमय,
ऐसा करेंगे हम अपेक्षा।।
मुझ संग परिजनों को भावो,
ऐसी है तुमसे मेरी आकांक्षा।।

हाथों में तुम्हारे वरमाला होंगी,
मेरे जीवन की तुम सहचर रहोगी।
तुमसे मेरी इक अभिलाषा होगी,
हममें प्यार की बस भाषा होगी।।

जयमाला है, स्वयंवर का ही स्वरूप,
दिखाता ये नाते बने सबके अनुरूप।
मम्मी, भाभी, बहू तेरे होंगे अनेक रूप,
हृदय में तुम मेरे बनी रहोगी प्रिय स्वरूप।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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