डोली चली जब - कविता - अंकुर सिंह

डोली चली जब बाबुल घर से,
माँ बोल उठी अपनी सुता से।
हुई पराई अब तुम बेटी,
नाता तुम्हारा अब उस घर से।।

तात कह रहे अब सुता से,
तुम पराई हुई राजकुमारी।
बने रहना अपने स्वभाव से,
ससुराल में सबकी तुम प्यारी।।

जब डोली उठा रहे कहार,
कह पड़ा फफक कर भाई।
अब भगिनी तुम हुई पराई,
देवर होगा तुम्हारा भाई ।।

गले लगकर भाभी बोली,
इंतज़ार करत तेरी डोली।
अब उस घर में ही मनेगी,
तुम्हारी दीवाली और होली।।

डोली चली जब बाबुल घर से,
उदास हुए सब मानुष मन से।
कह रहे हाथ जोड़ कर,
रखना इसे बड़े लाड़ प्यार से।।

हाथ जोड़ कह रहे पिता जमाई से,
दे रहे तुम्हे मैं अपनी प्राण प्यारी।
कर रहा करबंद विनती प्रभु से,
जीवन हो दोनो के कल्याणकारी।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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