परिणय सूत्र - कविता - विनय विश्वा

देखा देखी प्रथम चरण हौ
दूजा है बरियाती
तिजा में दुलहिन घरे आई
निज संसार छोड़ी आई।
एक भरोसा तुझसे है प्रिये
तू संसार है मेरा
दो कुटूंब एकाकी हो जाए
ये अरमान है मेरा।
दो पहियों के जैसा जीवन
चलना है ये सिखाती
दो जीवन अनंत संस्कार
की पतित पावनी "परिणय"
परिणति।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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