रिश्ते-नाते - कविता - विकाश बैनीवाल

गुड़-शक़्कर से होते है रिश्ते-नाते, 
मिठास बिन रहता सब फीका-फीका। 
परिवार की बुनियाद इन्हीं से  जुड़ी, 
रिश्ते-नाते बताते ज़िंदगी का सलीक़ा। 

रिश्ते सब प्रेम-भाव की बेजोड़ संधि है, 
रीति-रिवाज़ो से संबंध सब है जुड़े। 
हो अगर नि:स्वार्थ मन रिश्तों के बिच, 
तो कोई ना रूठे व ना कोई सिकुड़े। 

रिश्ते टिके विश्वास की गहरी नींव पर, 
इस नींव पर बने अनेक सुन्दर  मकान। 
दादा-दादी रिश्तेदारों के बने मुखिया, 
मुखिया से जुड़े हमसे रिश्ते अनजान। 

अनबन से अरसों के नाते ना तोड़िये, 
रिश्तों के बिना कहा बचेगी लिहाज़। 
जिन्होंने सच्चे दिल से सँजोए नाते, 
वो बंदा जानता समाज और लाज़। 

विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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