संदेश
विधा/विषय "राजनीति"
तीन लोग - कविता - आलोक कौशिक
शुक्रवार, सितंबर 04, 2020
तीन लोग संसद के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे और नारे लगा रहे थे एक कह रहा था हमें मंदिर चाहिए दूसरा कह रहा था हमें मस्जिद …
बाढ़ विभीषिका - कविता - सुनीता रानी राठौर
गुरुवार, अगस्त 27, 2020
सावन में उफनती तीव्र वेग से नदियां कभी वरदान कभी अभिशाप बनती। टूट जाते जब नये बांध और पुलिया आम जन के हृदय में दहशत भरती। विकर…
आज़ादी - लघुकथा - सुनीता रानी राठौर
गुरुवार, अगस्त 20, 2020
राजू अपने पिता के साथ उदास बैठा था। घर के आसपास पूरे गाँव में बाढ़ का पानी भरा था। चार महीने से कोरोना के वजह से स्कूल की छुट्टी थी…
नेता जी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गुरुवार, जुलाई 30, 2020
अब जनता भी होशियार हो गई तुम सोच समझ लो नेताजी। अब झांसे में ना आएगी, यह गणित लगा लो नेताजी । जब जब चुनाव का बिगुल बजा, तुम …
मझधार फंसी अब नैय्या - भोजपुरी कविता - बजरंगी लाल
शुक्रवार, जुलाई 10, 2020
ई राजनीति विषधारा बाड़े, केकरा के गद्दार लिखी, केकरा देश हितैषी बोलीं, केकरा के विषधार लिखीं। लूटम-लूट मची बा भइया, सबही जम के…