आज़ादी - लघुकथा - सुनीता रानी राठौर

राजू अपने पिता के साथ उदास बैठा था। घर के आसपास पूरे गाँव में बाढ़ का पानी भरा था। चार महीने से कोरोना के वजह से स्कूल की छुट्टी थी। बाढ़ के कारण गांव में बिजली भी नहीं थी।

आज उसके मानस पटल पर पिछले वर्ष विद्यालय में 15 अगस्त को हुए आयोजन के दृश्य चलचित्र की भांति घूम रहे थे। मुख्यअतिथि मंत्री महोदय और प्रधानाध्यापक ने अपने ओजस्वी भाषण के द्वारा आज़ादी की जो महत्ता बताई थी वो उसके बाल सुलभ मन में स्वप्न की भांति महसूस हो रहा था।

दस दिनों से उसके घर आंगन में पानी भरा था। किसी तरह जीवन यापन हो रहा था। सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिल रही थी। कभी- कभी हेलीकॉप्टर से कोई ब्रेड या खाने का पैकेट गिरा देता। वह भी उसे कभी मिल पाता कभी नहीं।

जिंदगी यूँ ही गुजर रही थी। पुल टूट जाने के कारण गाँव वाले शहर से कटकर रह गये थे। कभी कभी किसी के मुख से सुनने को मिलता टीवी पर तो सिर्फ बड़े शहरों के बाढ़ के पानी का न्यूज छाया रहता है। दिल्ली मुंबई के जलभराव का दृश्य दिखाया जाता है। पर हम गाँव वालों की बेबसी मीडिया वाले भी कम ही उजागर करते हैं।

वो नेताओं की भाषण में बहुत कुछ सुना था --दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई--आज विकास ऊँचाइयों को छू रहा है परन्तु गरीब राजू को अपने आसपास चारों तरफ कुछ ऐसा नहीं दिखाई दे रहा था और वो सोच रहा था मंत्री जी का भाषण स्वप्न था या हकीकत।

चुनाव होने वाला है। आज मंत्री जी भटकते हुए गाँव की तरफ आ गए तो क्या बोलेंगे ? आज़ादी के बाद उन्हें क्या मिला और हमें क्या मिला? हमें कितनी खुशियां मिली और हमारे कितने अच्छे दिन आए? क्या मैं कभी उचित ढंग से शिक्षा प्राप्त कर पाऊँगा या---या---या?

सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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