तुम सोच समझ लो नेताजी।
अब झांसे में ना आएगी,
यह गणित लगा लो नेताजी ।
जब जब चुनाव का बिगुल बजा,
तुम कितने पाठ पढ़ा जाते ।
लंबे भाषण झूठे वादे ,
तुम करके उसे लुभा जाते ।
पर कुर्सी पक्की होते ही,
मुंह फेर रहे हो नेताजी ।
अब जनता भी होशियार हो गई,
तुम सोच समझ लो नेताजी।
जनता भी हिसाब की पक्की है,
कसमे वादे सब देख लिए ।
भोली जनता का पेट काट ,
अपने खाते मजबूत किए ।
घर बैठो पश्चाताप करो,
यह कुर्सी छोड़ो नेताजी ।
अब जनता भी होशियार हो गई,
तुम सोच समझ लो नेताजी।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)