संदेश
प्रकृति और मानव - दोहा छंद - महेन्द्र सिंह राज
समय बहुत विपरीत है, बुरा सभी का हाल। सावधानी रखो सभी, चलो सभलकर चाल।। इक दूजे की मदद ही, हो मानव का कर्म। कोरोना बन घूमता, आज मनुज क…
मानव के दुष्कृत्य - कविता - विनय "विनम्र"
क्या रचा था प्रकृति ने पहुँचा कहाँ इंसान है, कफन में लिपटा हुआ ख़ुद को मानता भगवान है। नदियों को विष से सींचकर संवेदना को पी गया, वृक्ष…
मानव - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध
माना जीवन कठिन और राहें पथरीली। पाँव जकड़ लेती है अक्सर मिट्टी गीली।। मुश्किल होते हैं रोटी के सरस निवाले। पटे पुराने गज दो गज के शाल-द…
मानव की अभिलाषा - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मानव की जिजीविषा अनंत पथ, केवल जीवन उड़ान न समझो। नित अटल निडर निर्बाध लक्ष्य पथ, ख़ुशियाँ ज़न्नत निर्माणक समझो। उन्मुक्त इ…
नयापन की तलाश - कविता - मधुस्मिता सेनापति
मानव हैं हम हमें थोड़ा नहीं कुछ अधिक चाहिए रिश्ते अब हो चुके हैं पुरानी इसमें हमें परिवर्तन चाहिए...!! आज जो हैं उसमें बदलाव चाहिए ज…
मैं - कविता - नीरज सिंह कर्दम
काश ! कोई पूछे मुझसे कि मैं क्या हूँ ? मैं कौन हूँ ? मैं सर उठाकर बताने में असमर्थ हूँ । क्योंकि मैं इंसान नही रह गया हूँ । मैं हिंसा,…
प्रकृति और मानव - कविता - अनिल भूषण मिश्र
असंख्य जीव प्रकृति ने उपजाया सब में बुद्धि का संचार कराया।। मानव भी उनमें एक समाया पर बुद्धि में वह रहा सवाया।। अतिरिक्त बुद्धि से…