संदेश
दिशा दो नाथ - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
जैसा कहते आप हैं, करन चहौं दिन-रात। बिन आज्ञा नहिं डोलत, थर-थर पीपर पात॥ थर-थर पीपर पात, धरा को पग में बांधे। सारा जग का बोझ, धरे हो अ…
माँ शारदे की चरणों में - गीत - प्रवीन 'पथिक'
हे माँ! इतनी शक्ति दो, उर में अगाध भक्ति दो। कि तुझसे दूर न जाऊँ मैं, बस तुझको दिल में पाऊँ मैं। हो जाए यदि राह भ्रमित, दुनिया की लुभा…
हे वीणा वादिनी स्वागत बारंबार है - कविता - आशीष कुमार
हम बच्चों को सबसे प्यारा वसंत पंचमी त्यौहार है, हे वीणा वादिनी शारदे मैया स्वागत बारंबार है। निर्मल मन से मूर्ति बैठाते विधि विधान से …
ज्ञान दायनी माता मेरी नैया पार लगा दो - कविता - डॉ॰ कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
दूर-दूर तक तम ने अपनी, चादर है फैलाई। तरस रहे हम उजियारे को, तम ने कला दिखाई। तम को दूर भगा दो अम्बे ज्ञान का दीप जला दो। ज्ञान दायनी …
सरस्वती वन्दना - कविता - अनिल भूषण मिश्र
हे ज्ञानदायिनी बुद्धिदायिनी माँ सरस्वती तुम हो कितनी महान, नहीं कोई कर सकता इसका बखान। त्रिभुवन तुम्हारी आभा से है चमक रहा, तुम्हारा द…
जगत जननी माँ - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ओ माँ! जगत जननी माँ, अब मेरा कल्यान कर दे। हम तो हैं इक शिशु तुम्हारे, माँ हृदय में ज्ञान भर दे। 2 हे क्षमामयि! हे दयामयि! अब मेरा उद्…
विश्वात्मा हो कहाँ तुम? - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
मैं तो कुछ कहता नहीं, फिर भी मेरी आँखें हैं कहती। जो कभी मैं देखता नहीं, वे सारी राज़ हैं ये खोलती। और कि विश्वास मेरा कहता है चीत्कार …