संदेश
प्रकृति का प्रेम - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
तिमिर फैले धरा पर जहाँ-जहाँ, स्नेह लौ से दीप जलाए जाते। खिलखिलाते यह धरा चहुँओर, प्रेम पुष्प के पौधे लगाए जाते। करुणा की इत्र महकते धर…
पर्यावरण - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
पर्यावरण है प्रकृति का आखर, सूरज, चंदा, धरती और बादर। प्रकृति का अद्भुत चहुँदिशि घेरा, चंदा डूबा फिर हुआ सवेरा। कौन इन सबसे अनजाना होग…
मैं प्रकृति प्रेमी - कविता - रूशदा नाज़
मैं प्रकृति प्रेमी वो मेरी हमसाथी। मैं उदास हूँ, वो भी उदास हो जाती, मैं निराश हूँ, वो भी अश्क बहाती। उमड़ते-घुमड़ते बादल मेरे दु:खो क…
हरी भरी हो धरती अपनी - कविता - बृज उमराव
हरी भरी हो धरती अपनी, देती जीवन वायु। पथ में पथिक छाँव लेता हो, शुद्ध करे स्नायु॥ तापान्तर में वृद्धि दिख रही, जागरूक हो जनमानस। …
ब्रह्मानंद का स्वर्ग दौरा - कहानी - अशफ़ाक अहमद ख़ां
यू॰पी॰ के कई ज़िले पिछले दिनों सूखे की चपेट में थे। किसान पूरे सावन इंद्रदेव की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते रहे, इंद्र देव को ख़ुश करने…
नयनों के दीप जले हैं - कविता - राकेश कुशवाहा राही
नयनों के दीप जले हैं, काजल से सुन्दर सजे हैं। अंतस मे कुछ सपने हैं, जिसमें जीवन के रंग भरे हैं। नयनों के दीप जले हैं। पीली सरसों झूम र…
जुगनू - कविता - सुनील कुमार महला
जुगनुओं सा होना चाहिए जीवन जग को प्रकाशमान करते मिटाते अँधियारा घोर अँधकार में जब टिमटिमाते हैं जुगनू आनंद से भर उठते हैं अनगिनत हृदय …