संदेश
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव
सकल सृष्टि में संकट छाया, दूषित हुआ समाज। प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥ ब्रह्मा ने जब सृष्टि बनाई, रखा सभी का ध्यान। ज…
प्रकृति पीड़ा - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित'
होत रहेला धूप-छाँव चिरई। जनि करा करेजवा में घाव चिरई॥ ग़लती के पुतला हवे मनई। मत बढ़ावा घर से पाँव चिरई। जनि करा... घरवा में चिरई उछल क…
जागृति - कविता - भजन लाल हंस बघेल
सूर्योदय से पहले चिड़िया चहचहाई, उठो! जागो! यह संदेशा लाई। चल रही मंद-मंद शीतल पवन, अति आनंदित! रोमांचित! तन और मन। पीपल के पत्तों की …
उनींदी आँखें - कविता - संजय राजभर 'समित'
चैत्र मास तपती धरा टैंकर का पानी यह कैसी बुद्धिमानी पाउच में पानी! एक तरफ़ मंगल ग्रह पर खोज एक तरफ़ प्रकृति की चेतावनी बार-बार फिर भी ज…
जंगल का दृश्य - कविता - आशीष सिंह
ये लहरें नदी की, पावस की फुहार, ये है कानन का तरुवर, यहाँ शीतल बयार। यहाँ तितलियों का डेरा, फूल खिलते हज़ार, यहाँ चिड़ियों की चह-चह, यह…
नन्हा-सा पौधा - कविता - बिंदेश कुमार झा
धरती की छत तोड़कर, एक पौधा बेजान-सा आकार, सूर्य की लालिमा से प्रोत्साहित उठ रहा है देखने संसार। बादलों ने चुनौतियाँ दीं पत्थर की बूंदे…
यमुना - आलेख - बिंदेश कुमार झा
सदियों से यमुना और कारखानों के बीच के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। शायद वैश्वीकरण ने यमुना के उपकारों को भुला दिया है। यमुना को इस बात से…
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