नयनों के दीप जले हैं - कविता - राकेश कुशवाहा राही

नयनों के दीप जले हैं,
काजल से सुन्दर सजे हैं।
अंतस मे कुछ सपने हैं,
जिसमें जीवन के रंग भरे हैं।

नयनों के दीप जले हैं।

पीली सरसों झूम रही,
अमराई सी फूल रही।
मन में बसा इन्द्रधनुष कोई,
जैसे आँखों ने स्वप्न रचे हैं।

नयनों के दीप जले हैं।

धूल बना चंदन तन मन का,
फूल खिला है बंजर मन का।
पवन सुनाता गीत कोई हैं,
जैसे उर के टूटे तार जुड़े हैं।

नयनों के दीप जले हैं,
काजल से सुन्दर सजे हैं।

राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos