संदेश
तुम मुझे संरक्षण दो, मैं तुम्हें हरियाली दूँगा - कविता - पारो शैवलिनी
काटो और काटो और और काटो क्योंकि, कटना ही तो नियति है मेरी। अगर कटूँगा नहीं तो बटूँगा कैसे? कभी छत, कभी चौखट कभी खिडक़ी, कभी खम्भों क…
पर्यावरण और मानव - घनाक्षरी छंद - अशोक शर्मा
धरा का शृंगार देता, चारो ओर पाया जाता, इसकी आग़ोश में ही, दुनिया ये रहती। धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और ज़मीं, जीव सहभागिता को, आवरन क…
सामूहिक रूप से गवाही - कविता - डॉ. कुमार विनोद
प्रकृति के शाश्वत क्रम में, समुद्र में ज्वार-भाटे आते रहते हैं, यह क्रम, जैसे ही व्यतिक्रम होता है, प्रकृति के साथ होती है मनमानी। निश…
पर्यावरण - गीत - महेश चन्द सोनी "आर्य"
पर्यावरण हमारा, हम सबको वो प्यारा। पर्यावरण हो शुद्ध अगर तो जीवन सुखी हमारा। हवा शुद्ध नहीं शुद्ध नहीं जल, रोज़ करें पेड़ों का क़त्ल ह…
अंकुरण - कविता - असीम चक्रवर्ती
सूरज मेघों के संग लुका-छिपी खेल रहा था, देखते ही देखते बर्षा की बूँदें झर झर टपकने लगीं। माटी की सोंधी महक फैल गई चारों ओर वातावरण म…
जंगल युग की ज़रूरत - लेख - देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन"
सभी जीवों में अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता नहीं होती। अपने भोजन की पूर्ति के लिए जीव उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। और उत्पादक हरे प…
पर्यावरण का महत्व - लेख - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ईश्वर ने पृथ्वी का निर्माण किया और फिर उसके चारों तरफ़ एक भौतिक तत्वों का आवरण निर्मित किया, जिससे इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो सके। इसी आ…