संदेश
मोगरे का फूल - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
चश्म-ओ-गोश के तट पे चिड़िया चहचहाने आई, रिज़्क़ लाज़िम हैं, उठ ना, बख़्त कहता है। अब तक ना सजी मिरी सुब्ह-ओ-जीस्त, बग़ैर तिरे मिरा आलम तन्…
बुझते चराग़ों को शरारा मिल गया - नज़्म - श्याम निर्मोही
बुझते चराग़ों को शरारा मिल गया, ज़िन्दगी को जैसे गुज़ारा मिल गया। डूबना अभी बाकी है उनकी मुहब्बत में, झील सी आँखों से इशारा मिल गया। क…
मुक़म्मल जहान हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मेहमाँ तिरे आने से जीवन में आया मिठास हैं, ये शादी का लड्डू जीवन में लाया उल्लास हैं। कहते हैं ये लड्डू जो खाए वो पछताए होत हैं, तुझ स…
ठंड भी सुनती कहाँ - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
उफ़ ये कम्प लाती सर्द का, अलग अलग मिज़ाज है। बेबस ग़रीबो के लिए तो, बस सज़ा जैसा आज है। कुछ वाहहह वालों के लिए, तो मौज़ का आग़ाज़ है। कुछ के …
हाथ मलता रहा चाँद - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
रात भर हाथ मलता रहा चाँद है। चाँदनी रूठकर गुम कहीं हो गयी। सारे तारे सितारे लगे खोजने। रातरानी छिपी या कहीं खो गयी। मीठे मीठे मोहब…
बेमौल माज़ी - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
हम रोये बहुत, नैनों को ना सूखने दिया कभी, इस काफ़िर दिल ने तुझकों ना भूलने दिया कभी। शामों की सुर्ख़ फ़ज़ाओं में तुझसे मुख़ातिब हुआ कभी, मा…
कर्मवीर मास्टर - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मिरी मसर्रतों से गुफ्तगूं कर ज़ीस्त ने कुछ यूँ फ़रमाया हैं, ज्ञानमन्दिर में आकर हयात ने हयात को गले लगाया हैं। सोहबत में तेरी ए पाठशाला …