संदेश
हिमालय की गोद में - कविता - राम प्रसाद आर्य
बरफ़ रजाई ओढे, ये परवत जाल है। धूप की तपन फेल, आग की अगन फेल, बरफ़ी बयारों में भी अजब उबाल है।। बरफ़ पडे़ फर-फर, तन कंपे थर-थर, बरफ़ी बा…
शीत ऋतु का आगमन - कविता - आशीष कुमार
घिरा कोहरा घनघोर गिरी शबनमी ओस की बुँदे, बदन में होने लगी अविरत ठिठुरन। ओझल हुई आँखों से लालिमा सूर्य की, दुपहरी तक भी दुर्लभ हो रही प…
शिशिर ऋतु - कविता - शुचि गुप्ता
चुम्बन गगन करे धरा, वीणा मधुर बजी, मृदु धूप में निखर नहा, दुल्हन प्रभा सजी। बन मीत प्रेम ऋतु शिशिर, है पालकी लिए, शुभ आगमन अनंग रति, र…
शीत - कविता - नंदिनी लहेजा
हो रही शांत अब तपन धूप की, हवाएँ पंख फहरा रहीं। रवि को है जल्दी वापसी की, निशा, शशि संग इतरा रही। गई वर्षा अपने घर वापस, अब शीतऋतु की …
ठंडक के नज़ारे - कविता - शिवम् यादव "हरफनमौला"
धूप औ धुँध की चल रही थी कटी। धूप भी न हटी, धुँध भी न छटी।। अपना रुतबा दिखाने में सब व्यस्त थे, कुश्ती दोनों की लगभग बराबर कटी।। वो भी …
ठंड भी सुनती कहाँ - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
उफ़ ये कम्प लाती सर्द का, अलग अलग मिज़ाज है। बेबस ग़रीबो के लिए तो, बस सज़ा जैसा आज है। कुछ वाहहह वालों के लिए, तो मौज़ का आग़ाज़ है। कुछ के …
मैं क्या करूँ - गीत - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने ठण्ड बढाई। आग जली घर-घर में, तो ओढी किसी ने रजाई। ठण्ड है, इस कदर, तन कंपे थर-थर, अब तुम ही बताओ बहन, …