सेवा इंसान को बनाती महान - कविता - सुषमा दिक्षित शुक्ला

जग में सेवा करने वाले, 
ही महान बन पाए हैं ।
मानो सेवा की खातिर ही ,
वह धरती पर  आये  हैं ।
मानव सेवा से बढकर ,
तो कोई कर्म नहीं है ।
मानवता से बढ़कर जग में, 
कोई धर्म नहीं है ।
सेवा का है धर्म निराला ,
करो वतन की तुम सेवा ।
धरती मां की सेवा कर लो ,
करो गगन  की  तुम सेवा ।
कितने कंटक राह मिलें पर,
सेवा से घबराना ना।
यही कर्म है यही धर्म है ,
पीछे तुम हट जाना ना ।
मात पिता औ गुरु की सेवा,
सब संताप  मिटाती है ।
सेवा बिन सारी पूजा भी ,
निष्फल ही हो जाती है ।
युगों युगों से गौ सेवा का ,
सुंदर नियम विधान रहा।
देव ,मनुज अरु मुनियों ने भी, 
गौ सेवा को धर्म कहा ।
वृक्षों की सेवा से लेकर ,
पशुओं तक की सेवा को।
धर्म समझकर मीत निभाओ,
पा जाओगे मेवा को ।
सास ससुर और पति की सेवा,
सती सावित्री ने जब की।
काल देव भी कांप उठे तब ,
बदला विधि का नियम तभी ।
लक्ष्मण की सेवा से सीखो ,
सीखो श्रवण कुमार से ।
एकलव्य की सी गुरु सेवा ,
सीखो कुछ संसार से ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला
राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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