महेश कुमार हरियाणवी - महेंद्रगढ़ (हरियाणा)
भय - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
सोमवार, नवंबर 04, 2024
डरने वाले इस दुनिया में,
डर के क्या कुछ पाएगा।
आसमान है खुला मगर,
उड़ने वाला उड़ पाएगा।
औजार सभी हैं दुनिया में,
पथ ये धुँधला जाते हैं।
जिसने क़दम बढ़ाया आगे,
राह वही बढ़ पाते हैं।
नया पुराना भेद बताना,
बदल रहा रंग-रूप ज़माना।
तेरा सपना तेरा बहाना,
मंज़िल तेरी तेरा ठिकाना।
जोखिम में मेहनत होगी पर,
रिस्क में आनंद आएगा।
आसमान है खुला मगर,
उड़ने वाला उड़ पाएगा।
तेरी सोच में पुष्प समाए,
जो तू चाहे वो मिल जाए।
उम्मीदों के पँख लगे हैं,
रोकने वाले रोक न पाए।
अंदाज़ तेरा तुझसे प्यारे,
झिझका तो मर जाएगा।
आसमान है खुला मगर,
उड़ने वाला उड़ पाएगा।
सन्नाटों से डर मत जाना,
धुँध में धुलकर ख़ौफ़ न खाना।
नज़रों की एक सीमा है,
तुमको सीमा पार है जाना।
जैसे-जैसे धूप खिलेगी,
बादल ख़ुद छट जाएगा।
आसमान है खुला मगर,
उड़ने वाला उड़ पाएगा।
काली काली छाई घटाएँ,
अंबर की है अलग अदाएँ।
बारिश भी गिरने को आई,
धरती पे छपती परछाई।
ये सब मौसम के हैं नज़ारे,
इन से ना बच पाएगा।
आसमान है खुला मगर,
उड़ने वाला उड़ पाएगा।
डरने वाले इस दुनिया में,
डर के क्या कुछ पाएगा।
आसमान है खुला मगर,
उड़ने वाला उड़ पाएगा।
औज़ार सभी हैं दुनिया में,
पथ ये धुँधला जाते हैं।
जिसने क़दम बढ़ाया आगे,
राह वही चल पाता है।
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