गीता और ओपेनहाइमर - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'

गीता और ओपेनहाइमर - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी' | Hindi Kavita - Geeta Aur Oppenheimer - Prateek Jha
विज्ञान की शक्ति को उजागर करने वाला
दुनिया को बदलने वाला
प्रतिभाओं का सरदार
ओपेनहाइमर, गीता का था दीवाना।

जब युद्ध का मैदान सजा
विज्ञान और नैतिकता का प्रश्न उठा
हिंसा और मानवता का संघर्ष हुआ
तो वह दुविधा में गहरा समाया
वह सोचता, मानवता का धर्म निभाऊँ
या देश का
वैज्ञानिक होने का कर्तव्य निभाऊँ।

इन दुविधाओं के भँवर से
उसने मुक्ति पाई
जब गीता को गले से लगाया
जैसे अर्जुन ने कृष्ण को लगाया।

जब गीता की गूँज मन में समाई
खड़ा हो गया रेगिस्तान के मध्य
ट्रिनिटी के विस्फोट में
गीता की गूँज सुनाई दी—
“कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो 
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।”

जब परमाणु की शक्ति से
मानवता का अस्तित्व संकट में आया
ओपेनहाइमर ने फिर से गीता का पाठ दोहराया
फिर निकल पड़ा वह अपना
महान कर्तव्य निभाने
दुनिया को जगाने
परमाणु युद्ध के ख़तरों से
मानवता को बचाने।

दुनिया में अनवरत गूँजेगा
गीता का सार
ओपेनहाइमर का संदेश महान।

प्रतीक झा 'ओप्पी' - प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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