कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)
अग्निशिखा - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
शुक्रवार, अक्टूबर 04, 2024
हाँ मैं अग्निशिखा हूँ
ख़्वाहिशों का मंज़र लिए
एक आस की ज्योत बन
सबके ह्रदय में पलती हूँ।
बारिश की बूँदों संग मिल
सौंधी ख़ुशबू-सी महकती
मुस्कान बन, अन्नदाता के
चेहरे पर खिलती हूँ।
क़ैद भी करे कोई कैसे मुझे
मैं तो ख़्वाब हूँ, बंद आँखों का
ढ़हती रेत की मानिंद-सी
कभी मुठ्ठी से फिसलती हूँ।
कल्पनाओं की उडा़न भर
आसमाँ को नाप आती हूँ
किसी शायर की नज़्म-सी
काग़ज़ों पर उतरती हूँ।
पिंजर बनने से पहले शरीर
लौट आए औलाद मेरी
इंतज़ार का अलख जगाए
जो आस लिए बैठे है।
उन बुझते चिरागों में दहकती
अग्निशिखा हूँ मैं!
एक आस की ज्योत बन
सबके ह्रदय में पलती हूँ।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर