अग्निशिखा - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'

अग्निशिखा - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी' | Hindi Kavita - Agnishikhaa - Kumud sharma 'Kashvi'
हाँ मैं अग्निशिखा हूँ
ख़्वाहिशों का मंज़र लिए
एक आस की ज्योत बन
सबके ह्रदय में पलती हूँ।

बारिश की बूँदों संग मिल
सौंधी ख़ुशबू-सी महकती
मुस्कान बन, अन्नदाता के
चेहरे पर खिलती हूँ।

क़ैद भी करे कोई कैसे मुझे
मैं तो ख़्वाब हूँ, बंद आँखों का
ढ़हती रेत की मानिंद-सी
कभी मुठ्ठी से फिसलती हूँ।

कल्पनाओं की उडा़न भर
आसमाँ को नाप आती हूँ
किसी शायर की नज़्म-सी
काग़ज़ों पर उतरती हूँ।

पिंजर बनने से पहले शरीर
लौट आए औलाद मेरी
इंतज़ार का अलख जगाए
जो आस लिए बैठे है।

उन बुझते चिरागों में दहकती 
अग्निशिखा हूँ मैं!
एक आस की ज्योत बन
सबके ह्रदय में पलती हूँ।

कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)

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