श्रेया पांडेय - हटा, दमोह (मध्यप्रदेश)
मेरी ख़ामोशी - कविता - श्रेया पांडेय
शनिवार, अक्टूबर 05, 2024
जब एक दिन तन्हा बैठी में,
मेरी ख़ामोशी मुझसे बोल उठी,
यूँ न तू तन्हा बैठा कर,
हर रोज़ मुझे न याद किया कर।
कल वो दौर किसी और का था,
आज दौर ये तेरा है।
मुस्कुराकर उससे बोल उठी मैं,
यूँ न तू भ्रम पाला कर।
कल जो दौर निकल गया,
क्या तू वापस ला पाएगी?
आँख-मिचौली सी करती,
फिर वो मुझसे बोल उठी,
वो इश्क़, मोहब्बत का दौर था पगली,
वहाँ तेरा क्या काम था?
एक बात मेरी तू मान तो सही,
सच को तू पहचान तो सही।
कल को तू अब याद न कर,
आज को तू बरबाद न कर।
हस्ती-मुस्कुराती फिर बोल उठी,
एक बार तुझे फिर कहती हूँ,
हर रोज़ मुझे न याद किया कर,
ख़ुद को यूँ तन्हा न कर।
एक दौर तेरा भी आएगा,
जो ख़ामोशी तेरी ले जाएगा।
एक दौर तेरा भी आएगा,
जो ख़ामोशी तेरी ले जाएगा।
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