दूरी - गीत - संजय राजभर 'समित'

दूरी - गीत - संजय राजभर 'समित' | Hindi Geet - Duri | दूरी पर गीत/कविता
कौन कहाॅं है, क्यों कैसा है?
ईर्ष्या-डाह से मजबूर है।
कोई दूर रहकर पास है,
कोई पास रहकर दूर है।

लिंग भेद का अभिमान लिए,
कर सीना चौड़ा चलता है।
तू-तू, मैं-मैं की गर्मी में,
वह बात बिना ही जलता है।

गर ग़ुस्सा है छद्म भाव में,
वह टूटता चकनाचूर है।
कोई दूर रहकर पास है,
कोई पास रहकर दूर है।

छोटी-छोटी बातें अक्सर,
जो हिय में ढोने लगता है।
ह्रदय कुंज को कलुषित करके,
वह तिल-तिल मरने लगता है।

बतंगड़ बने बात पर बात।
यही जीवन का दस्तूर है।
कोई दूर रहकर पास है,
कोई पास रहकर दूर है।

जीवन पथ है ऊबड़-खाबड़,
संभव भी है ठोकर खाना।
बड़ा सहज है अनबन बाना,
और कठिन है साथ निभाना।

एक खाट आलिंगन में पर,
रूह में नफ़रत भरपूर है।
कोई दूर रहकर पास है,
कोई पास रहकर दूर है।


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