कठपुतली - कविता - अजय कुमार 'अजेय'

कठपुतली - कविता - अजय कुमार 'अजेय' | Hindi Kavita - Kathaputali | कठपुतली पर कविता, Hindi Poem On Puppet
अंग-अंग पर बाँधे धागे,
तभी हिले जब हिलते तागे।
कठपुतली है नाम कहाई,
मन को सबके भाती ताई।
कभी प्रसन्न कभी यह रूठी,
लोककला प्रतिमान अनूठी।
करे नियंत्रण बैठा कोई,
अंग चलाता सारे सोई।
हर नर कठपुतली जग माही,
श्रीहरि ब्रह्म चलावें जाही।
हिला ना एक अंग भी पाए,
शिव जब तक ना डोर हिलाए।
जग मनमोहक खेल पुराना,
सजग चलाता कला निधाना।
अभिनव दिखती मंगूताई,
सकल जगत कठपुतली भाई।


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