प्रेम के रूप अनेक - सरसी छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

प्रेम के रूप अनेक - सरसी छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' | Sarsi Chhand - Prem Ke Roop Anek - Bhagwati Prasad Mishra 'Bedhadak'. प्रेम पर छन्द रचना
लेकर हाथ चाय का प्याला,
खड़ी नारि सुकुमारि।
खन-खन बाजे चूड़ी कंगन,
पद पैजनि झंकारि॥

कमर बाँध स्वर्णिम करधनियाँ,
बाजु बंद सरकार।
नाक नथुनियाँ प्यार उडेले,
दिलों झूमता प्यार॥

मंद-मंद मुस्कान बिखेरे,
हैं कजरारे नैन।
बोलति मुख से फूल बिखेरति,
मीठ-मीठ हैं बैन॥

ठंड बहुत है काँपति तनवा,
दिल बिच बोलति मोर।
पिया मिलन की बाट जोहती,
आशातीत चकोर॥

दिल बिच छूटे मित्र कपकपी,
माघ माह की भोर।
चाह-चाह में करें पूर्वज,
बैठि बगलिया शोर॥

आओ मित्रो पोर जलाई,
सेंकी सब-जन हाँथ।
बाबा-दादी ओढ़ रजाई,
निभा रहे हैं साथ॥

पति-पत्नी हाथों को थामें,
दिल में भरकर प्यार।
प्रेम प्यार मनुहार झुलाएँ,
घर आँगन संसार॥

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

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