गाँव - कविता - संजय राजभर 'समित'

गाँव - कविता - संजय राजभर 'समित' | Hindi Kavita - Gaanv - Sanjay Rajbhar Samit | Hindi Poem On Village. गाँव पर कविता
शाम होते ही
अँधेरा छा जाता था
कच्ची सड़कें
बरसात में चलना मुश्किल होता था
रात में उमस और मच्छर
खाने के लाले
फटे पुराने कपड़े
रिसता छप्पर
टपकता खपरैल, 

फिर भी
प्यारा था मेरा गाँव
आज भी है
जी चाहता है
आज भी वही माहौल मिले
क्योंकि उसमें
सादगी थी संतोष था
सुकून था। 


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