गोलेंद्र पटेल - चंदौली (उत्तर प्रदेश)
चोकर की लिट्टी - कविता - गोलेन्द्र पटेल
शुक्रवार, नवंबर 24, 2023
मेरे पुरखे जानवर के चाम छिलते थे
मगर, मैं घास छिलता हूँ
मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ
मेरे सिर पर
चूल्हे की जलती हुई कंडी फेंकी गई
मैंने जलन यह सोचकर बरदाश्त कर ली
कि यह मेरे पाप का फल है
(शायद अग्निदेव का प्रसाद है)
मैं पतली रोटी नहीं,
बगैर चोखे का चोकर की लिट्टी खाता हूँ
चपाती नहीं,
चिपरी जैसी दिखती है मेरे घर की रोटी
मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ
मुझे हमेशा कोल्हू का बैल समझा गया
मैं जाति की बंजर ज़मीन जोतने के लिए
ज़ुल्म के जुए में जोता गया हूँ
मेरी ज़िंदगी देवताओं की दया का नाम है
देवताओं के वंशजों को मेरा सच झूठ लगता है
मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ
मैं कैसे किसी देवता को नेवता दूँ?
मेरे घर न दाना है न पानी
न साग है न सब्जी
न गोइंठी है न गैस
मुझे कुएँ और धुएँ के बीच सिर्फ़ धूल समझा जाता है
पर, मैं बेहया का फूल हूँ
देवी-देवता मुझे हालात का मारा और वक़्त का हारा कहते हैं
मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ
देखो न देव, देश के देव!
मैं अब भी चोकर का लिट्टा गढ़ रहा हूँ,
चोकर का रोटा ठोंक रहा हूँ
क्या तुम इसे मेरी तरह ठूँस सकते हो?
मैं भाषा में अनंत आँखों की नमी हूँ
मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ
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