अंशुमाली उन्हीं की चरण वंदना है - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

अंशुमाली उन्हीं की चरण वंदना है - कविता | Shikshak Kavita - Anshumali Unheen Ki Charan Vandana Hai | शिक्षक पर बेहतरीन कविता. Best Poem On Teacher
प्राण फूँके हैं जिसने सघन चेतना के,
अंशुमाली उन्हीं की चरण वंदना है।

कलम को पकड़ कर अक्षर बनाए,
फिर वर्णमाला जिसने सिखाई।
पास में बैठ स्नेहिल कर फेर करके,
वाणी मधुर बोल शिशुता रिझाई।
भय से विकंपित अश्रु बहते दिखे जब,
पोंछ कर प्रेम पीयूष धारा पिलाई।

गढ़ते अभी भी जो पंथ अनगढ़,
अंशुमाली उन्हीं की चरण वंदना है।

भटका कभी भी जब राह से था,
मिला दण्ड मुझको न मैं भूल पाया।
सुपथ पर चला जो उनकी कृपा थी,
परिमल प्रफुल्लित बनी आज काया।
संगीतमय बन गई ज़िन्दगी यह,
निस्पृह रहा मैं व्याप्त पाई न माया।

लक्ष्य के मंत्र जिसने दिए अनवरत थे,
अंशुमाली उन्हीं की चरण वंदना है।

प्रेरणा दी मुझे मैं नहीं भूल पाया,
अनुशासन की घूँटी पिलाया।
अंँधेरा जहाँ जीवनी में कहीं था,
उन्हीं की कृपा से ज्ञान दीपक जलाया।
प्रस्तर था मैं गुरुदेव नें ही,
मुझे बोलती एक मूरति बनाया।

मझधार से जो तरणि खींच लाए,
अंशुमाली उन्हीं की चरण वंदना है।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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