आज़ादी - कविता - गणेश भारद्वाज

आओ मिलकर नमन करें हम,
माँ भारत के उन हीरों को।
राष्ट्र हित बलिदान हुए जो,
आज़ादी के उन वीरों को।

भारत को सकल बनाने की,
सर्व प्रथम जिसने ठानी थी।
शत्रु से लोहा लेने वाली,
वह झाँसी वाली रानी थी।

बूढ़ा हो बैठा था भारत,
नवयुवकों में नादानी थी।
थी शत्रुता हर रजबाड़े में,
भीरू सी सकल जवानी थी।

मनु के पदचिह्नों पर चलकर,
भारत ने लौ पहचानी थी।
अँधेरे का चीरहरण कर,
फिर आई लौट जवानी थी।

गोदें सूनी घर भी सूना,
सब में चरम रवानी थी।
सूनी माँगें राखी सूनी,
दी सबने ही क़ुर्बानी थी।

संघठित हुए सब रजबाड़े,
फिर सब में जोश जवानी थी।
राष्ट्र एकता की वह ताक़त,
तब गोरों ने पहचानी थी।

पाई आज़ादी फिर हमने,
लिख डाली अमर कहानी थी।
अपनेपन की क़ीमत क्या है,
हम सबने मिलकर जानी थी।

गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)

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