किसान का गान - कविता - गोलेन्द्र पटेल

घने जंगल में घने घन छाए
माँ! वीरों को रणभूमि में लाना है
हमें तेरी ही प्रशंसा गाना है
चाहे प्राण भले ही जाए
स्वयं को कर्तव्य-पथ पर चलाना है
मातृभूमि की लाज बचाना है।

अपनी धरती को स्वर्ग बनाऊँगा
सूखी हुई भूमि की प्यास मिटाऊँगा
हर घर प्रेम सुधा बरसाऊँगा
फिर से हरित क्रान्ति लाऊँगा
मज़दूर-किसानों की भूख मिटना है
मातृभूमि की लाज बचाना है।

अनेक फ़सलें ललहा रही हैं
कृषिका खेतों में गा रही हैं
खूँटियों पर टँगे कच्छे हैं
भोर के शोर अच्छे हैं
मन की चिड़ियाँ चहचहा रही हैं
तालाब में गाय-भैंस नहा रही हैं
नभ से इन्द्र को बुलाना है
मातृभूमि की लाज बचाना है।

देश ने देखा सुंदर सपना
घर हो सबके पास अपना
शास्त्री जी ने दिया नारा
जय जवान जय किसान
नयन में नदी की धारा
आँसू से सींचा हिन्दुस्तान
हरा-भरा वृक्ष का गाना है 
मातृभूमि की लाज बचाना है।

उस खेत में पानी बिन बीज जरा है
इस खेत में नानी बिन घड़रोज चरा है
नहर-नाली को देखकर ज़बान पर गाली है
पनकट साला; मालगुज़ारी साली है
सूखे क्षेत्र में गंगा को लाना है
मातृभूमि की लाज बचाना है।

गोलेंद्र पटेल - चंदौली (उत्तर प्रदेश)

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