राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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हे सकल सृष्टि के शिल्पकार! - कविता - राघवेंद्र सिंह | भगवान विश्वकर्मा पर कविता
हे सकल सृष्टि के शिल्पकार! - कविता - राघवेंद्र सिंह | भगवान विश्वकर्मा पर कविता
शनिवार, सितंबर 17, 2022
हे सकल सृष्टि के शिल्पकार!
हे सृजन कला के अधिष्ठात्र!
है नमन तुम्हें हे वास्तु पुत्र!
हो कला अधिपति एक मात्र।
तुम अस्त्र-शस्त्र के सूत्रधार,
तुम ही ब्रह्मा के हो प्रपौत्र।
तुम स्वयं यंत्र के शिल्पेश्वर,
तुम स्वयं धर्म के बने पौत्र।
तुमने ही रची लंका स्वर्णित,
तुम इंद्रपुरी के निर्माता।
तुम स्वयं द्वारिका वास्तुकार,
तुम कला-ज्ञान के हो ग्याता।
तुम पारंगत सर्व कला युक्त,
हो चतुर्भुजी तुम देव पूज्य।
अभिनंदन, वंदन, कर्णधार,
न तुमसा कोई देव दूज्य।
तुम शिव-त्रिशूल के शिल्पकार,
तुम ही शिल्पी यम कालदंड।
तुम शिल्पिक चक्र सुदर्शन के,
तुम ही शिल्पी इंद्र वज्रदंड।
तुम मूर्तिकार तुम शिल्पदेव,
पुष्पक विमान तुम निर्माता।
तुम लिए कमंडल-पाश हस्त,
तुम नवविद्या के हो ज्ञाता।
कर जोड़ नमन वंदन तेरा,
है पूज रहा तुझे आदि युग।
हे शिल्पकार! हे विश्वकर्मा!
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग।
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