ख़ुशी - कविता - नंदिनी लहेजा

दर्द को जो करती कम
चेहरे पर मुस्कान लाती हैं,
कहते हैं ख़ुशी उसे जो
मन को गुदगुदाती हैं।
दुख क्या, परेशानी क्या
क्या नाराज़गी, जलन,
मन में तेरे गर ख़ुशी तो
स्वस्थ रहता हैं तन-मन।
सबसे बड़ा धन हैं ख़ुशी
जो बाँटने से ना घटे,
यह कर देती चिंता को कम
जिससे केवल आयु घटे।
सच्ची ख़ुशी चाहता हैं तो
किसी के जीवन में ख़ुशी तू ला,
आन्तरिक ख़ुशी पाएगा,
इक बार तू इसे आज़मा।

नंदिनी लहेजा - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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