कौन है कृष्ण? - लेख - सिद्धार्थ 'सोहम'

भारत मान्यताओं, परंपराओं और संस्कृति को आज भी प्रासंगिक बनाने वाला राष्ट्र, लिखित रूप से 5000 साल पुरानी सभ्यता जो मात्र विश्वगुरु होने का सपना आज भी पिरोए हुए है, ताक़त के बल पर नहीं, ज्ञान के आधार पर। 
और इस परिकल्पना को आज चेतना देते हैं त्रिलोकीनाथ सर्वलोक महेश्वरम भगवान श्री कृष्ण! 
इस सृष्टि का आधार है कृष्ण, मानव का कल्याण है कृष्ण, सर्वश्रेष्ठ गुरु, पथ प्रदर्शक है कृष्ण, जो कुछ आप है, जो बनना चाहते हैं, मुझमें आप में हम सभी में जीवन की प्रासंगिकता है कृष्ण। क्योंकि वो ही कहते है:-
“मध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् (श्रीमद्भगवद्‌गीता)”
अर्थात्, संपूर्ण पृथ्वी उनके निर्देशन में कार्य करती है इस धरा पर हर एक मनुष्य मेरा अंश है जो कि मेरे द्वारा संचालित है। अतः, स्पष्ट है यह पृथ्वी है तो कृष्ण, नहीं है तब भी कृष्ण क्योंकि हर एक भावना कृष्णारत है। 

क्या जन्माष्टमी में हर बार कृष्ण का जन्म होता है? 
हर वर्ष हम धूमधाम से श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाते हैं यही प्रश्न बार-बार उठता है, तो इसका उत्तर है कृष्ण का वास्तविकता में कोई जन्म नहीं होता क्योंकि वह अमर है। दरअसल कृष्ण हमें यह बताना चाहते हैं कि तुम्हारा नया जन्म हो रहा है तुम वह सारे बुरे काम छोड़कर कृष्ण भावना अमृत में जीवन बिता दो और जो भी कार्य हो तुमको तुम्हारे लक्ष्य से जोड़े वह कृष्ण को प्रिय है। 
अर्थात तुम्हारा अच्छा कार्य ही दिखाता है कि तुम कृष्ण के अंश हो, तुम्हारा हर सार्थक कार्य कृष्ण को दर्शाता है तथा 
जन्म कृष्ण का नहीं, कृष्ण के अंश का होता है क्योंकि जो आज प्रकृति है उस प्रकृति का एक सूक्ष्म भाग मनुष्य है। 

आधुनिक भारत में कृष्ण और वास्तविकता में कृष्ण:-
आज सोशल मीडिया पर भगवान कृष्ण की फ़ोटो लगा कर आए दिन झूठा प्रचार किया जाता है कि यह कृष्ण ने कहा है। गीता को जिसने एक बार भी नहीं देखा वह गीता का दुरुपयोग करता है, श्रीकृष्ण को आज स्टेटस तक सीमित कर दिया गया है, अपनी अपनी सुविधानुसार श्रीकृष्ण का प्रयोग हो रहा है। यह है आधुनिक भारत में आधुनिक श्री कृष्ण, एक प्रेमी के रूप में उन्हें क्या कुछ नहीं कहा जाता, राधा रानी के वास्तविक संदेश को आज केवल प्रेम प्रसंग के रूप में देखा जाता है कृष्ण शायद आज क्रिश हो गए हैं क्योंकि नाम छोटा करना आधुनिक भारत की पहचान है। 
अगर यही सब कृष्ण है तो इसमें द्वारका बसाई वह कौन है? सुदर्शन चक्र को नियंत्रित करने वाला वह कौन है? अपने संगीत से बताने वाले कि संगीत से बड़ा प्रेम आकर्षण नहीं वह कौन है? पूरे ब्रह्मांड को अपने मुख में समाहित कर लेने वाला वह कौन है?
दुनिया का सबसे बड़ा मोटिवेशनल सेमिनार 5000 वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े होकर के धर्म परिभाषा बताने वाले और धर्म को कर्तव्य बताने वाला वह कौन है? प्रेम को त्याग की संज्ञा देने वाले वह कौन है?
महाभारत में युद्ध करो कहने वाले, ये बताने वाले की मेरे द्वारा यह पृथ्वी संचालित है मैं ही सुधारक हूँ और मैं ही विनाशक, लगातार कर्म करते रहने का उपदेश देने वाले, कृष्णयोग को कर्मयोग बताने वाले, वास्तविक प्रेम त्याग को समझाने वाले और कहने वाले कि हर युग में मैं ही था मैं हूँ और मैं ही रहूँगा, समय-समय पर आभास कराता रहूँगा मैं ही हूँ, क्योंकि विज्ञान बता सकता है कि पृथ्वी कैसे बनी पर मैं बता सकता हूँ कि यह पृथ्वी क्यों बनी? मेरा होना ही मेरी प्रासंगिकता है!
 
“नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः॥”

अर्थात नियत कर्म करो क्योंकि कर्म ना करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है इसी में श्री कृष्ण आत्मनिर्भर बनने का उद्देश्य निहित करते हैं। 
अतः आज कृष्ण की प्रासंगिकता कर्मयोग है।

सिद्धार्थ 'सोहम' - उन्नाओ (उत्तर प्रदेश)

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