सखी रे चल पनघट की ओर - कविता - सुशील कुमार

सखी रे चल पनघट की ओर, 
वाट निहारत आज वहाँ पर यशुदा नन्दकिशोर।

पानी भरन बहाने आई लेकर मटकी हाँथ,
राह अकेले में डर लागे तू भी चल मेरे साथ।
मना करें जाने से सखियाँ विनय करे कर जोर॥

बात मानकर सारी सखियाँ पनघट ओर सिधारी,
उत ख़ुश होकर मन में वंशी बजा रहे गिरधारी।
ग्वालों से छुपने को बोले, नहीं मचाना शोर॥

पानी भर के सभी गगरिया, एक एक शीश चढाए,
राधा सहित सभी सखियों ने घर को क़दम बढाए।
कुछ दूरी पर ही मोहन ने दई गगरिया फोर॥

सारी सखियाँ झगड़े राधा से तू संग न आती,
नहीं टूटतीं गगरी मेरी ना घर डाँट मैं खाती।
तब राधा ने कृष्ण को जाकर ख़ूब दिया झकझोर॥

तू नटखट है यशुदा छोरा कुल की नाक डुबाए,
बीच राह नारी को छेड़े नेक सरम न आए।
जा के कहती हूँ यशुदा से देंगी तुम्हें वो तूर।

डर के सहमें कहा कृष्ण ने राज़ न मेरा खोलो,
मार पड़ेगी बहुत मुझे तुम मत यशुदा से बोलो।
लाकर दूँगा सभी गगरिया थोड़ा रखो तुम धीर॥

मटकी तो लूँगी तुमसे मैं सजा भी संग में दूँगी,
उठक बैठक करो सामने तव जाके छोड़ूँगी।
वरना माता यशुदा के ढिग जाती हूँ सब छोड़॥

कान पकड़ कर उठक बैठक ग्वाले श्याम लगाए,
लाकर मटकी तब मोहन सब गोपी हाँथ गहाए।
पाकर मटकी राधा सखियाँ मन में भई बिभोर॥

सखी रे चल पनघट की ओर, 
वाट निहारत आज वहाँ पर यशुदा नन्दकिशोर।

सुशील कुमार - फतेहपुर, बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)

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