मैं बिहार हूँ - कविता - परमानन्द कुमार राय

1.
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!
उत्तर में कमला-कोसी की धारा
शीर्ष शिखर विराजे है,
दक्षिण में पुनपुन-फल्गु की धारा
चरण मेरा पखारे हैं!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

2.
पूरब में महानंदा गंगा
भागीरथी कहलाती है,
मेरी महत्ता स्वर्ग स्वर्ण सी
अविरल गंगा मान बढ़ाती है!
पश्चिम में है सोन घाघरा
गंगा में ही मिल जाती है!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

3.
गंगा मेरी ही जल धारा है,
गंगा से है सिंचित मेरी धरा,
उर्वर, उपजाऊ शक्ति भरा!
मेरे मध्य से गुज़रती है,
दो हिस्सों में विभक्त करती है!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

4.
उत्तर में जनकनंदनी सीता मैं
भारत का मान बढ़ाता हूँ,
मधुबनी पेंटिंग का गौरव हूँ मैं
सम्पूर्ण भारत का मान बढ़ाता हूँ!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

5.
दक्षिण में बुद्ध, बोध गया मैं,
विष्णु पद, नारायण हूँ!
मैं गौतम बुद्ध, मैं महावीर,
पावापुरी मैं ही हूँ!
मैं नालंदा, ब्रह्मकुंड भी
राजगीर तपोवन मैं ही हूँ!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

6.
राजाबली गढ़ की धरती हूँ मैं,
वामन का प्रत्यक्षदर्शी भी मैं!
अहिल्या की कमतौल स्थान हूँ,
दरभंगा कामेश्वर सिंह की धरती हूँ मैं!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

7.
आर्यभट्ट, लोकनायक,
कुंवरसिंह, गुरुगोविंद सिंह की जननी हूँ मैं,
चाणक्य, विद्यापति, 
उगना, माँझी, राजेंद्र प्रसाद को कैसे भूलूँ मैं?
इन पुत्रों ने मान बढ़ाया,
इनको कैसे भूलूँ मैं?
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

8.
गांधी की कर्मभूमि मैं,
रेणु दिनकर की जननी हूँ मैं,
कैसे इनको भूल जाऊँ मैं?
इनसे इज़्ज़त पाई मैं!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!
मैं बिहार हूँ! मैं बिहार हूँ!!

परमानंद कुमार राय - अंधराठाढी, मधुबनी (बिहार)

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