नागेंद्र नाथ गुप्ता - मुंबई (महाराष्ट्र)
सैरगाह - कविता - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
रविवार, अप्रैल 24, 2022
कौन किसकी परवाह करता यहाँ,
कौन गैरों की वाह वाह करता यहाँ।
कहने को अपने कहलाते हैं लोग,
कौन ख़ुद को गुमराह करता यहाँ।
गिरता झरना झरझर करता यहाँ,
मौसम भी पल-पल बदलता यहाँ।
मनमर्ज़ी भी हमेशा हैं चलती नहीं,
बादल पर रिमझिम बरसता यहाँ।
हर आदमी लापरवाह लगता यहाँ,
प्यार हरदम अफ़वाह लगता यहाँ।
परवान चढता तो, मिलते हैं दिल,
प्यार सागर सा अथाह लगता यहाँ।
हर दोस्त ख़ैर-ख़्वाह लगता यहाँ,
प्यार उसका बेपनाह लगता यहाँ।
कोशिश न करें आज़माने की हम,
सारा संसार सैरगाह लगता यहाँ।
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