अनुभूति - गीत - डॉ॰ सुमन 'सुरभि'

तू सुखद अनुभूति सा मेरे हृदय में आ समाया। 
भर गई आनंद से, आ कंठ से ऐसे लगाया। 

मैं ना जानू प्रीति की क्या रीति होती साँवरे!
बस तुम्हें पहचानते हैं नैन मेरे बावरे,
दीपमालाएँ सजी हैं प्रिय नयन के द्वार पर
प्रेम-रस बाती भिगोकर ये दिया तुमने जलाया। 
भर गई आनंद से आ कंठ से ऐसे लगाया। 

मौन थी वीणा हृदय की, आज वह झंकृत हुई। 
तुम मिले शीतल पवन सम, भावना पुलकित हुई। 
मुझ में अब मैं ना रही, तुम में समा कर खो गई।
प्रेम का ऐसा अनोखा जो अलख तुमने जगाया। 
भर गई आनंद से आ कंठ से ऐसे लगाया। 

है प्रकाशित ये गगन, नूतन छटा है रात की। 
मन मयूरा नृत्य करता अनकही छवि गात की।
है सुरभि साँसों में, मन्मथ का ये कैसा योग है।
जो मेरा अस्तित्व सारा प्रीति के रंग में नहाया। 
भर गई आनंद से आ कंठ से ऐसे लगाया।

डॉ॰ सुमन सुरभि - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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