मेहंदी की महक - कविता - रमाकांत सोनी

नारी का शृंगार मेहंदी चार चाँद चमका देती,
हिना में गुण आकर्षण पिया मन लुभा लेती।

रचकर रंग दिखाती है सौंदर्य में निखार लाती है,
दुल्हन के हाथों का सौंदर्य मनभावन सजाती है।

मेहंदी की मोहक महक मदमस्त हो मधुमास,
प्यार के मोती बरसते उमंगे छू लेती आकाश।

मन को शीतलता देती ख़ुशियों का लगे अंबार,
सद्भाव प्रेम आनंद का जन मन करती संसार।

महावर रचा हाथों में गौरी कर सोलह शृंगार,
कामिनी हिना संग हर्ष भरे उर उमड़ता प्यार।

हर्षकारक रक्तगर्भा रक्तरंगा मेहंदी मनभावन,
मनोरंजक रंजक हृदय प्रीत भरा लगता सावन।

त्यौहार उत्सव उमंग ख़ुशियों की हर बेला प्यारी,
शादी विवाह धूमधाम से हिना से ख़ुशियाँ हमारी।

मेहंदी की महक बरसती स्नेह की लेकर बरसात,
बाग की कलियाँ खिले लबों पे हो सुहानी बात।

रमाकान्त सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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